कुछ बातें पुरानी ...

करवटें भी बदली
हरकतें भी बदली
शिरकतें भी बदली
फुर्सतें भी बदली...

वक़्त जो बदला, तो आहटें भी बदली,
ऋतु 'पावस' मे भीगे थे कभी,
अब तो चाहतें भी बदली और आदतें भी बदली...

लोग भी बदले, उनकी नसीहतें भी बदली
ऊँचे पायदान पे पहुच के, उनकी नीयतें भी बदली...
जिस सीढ़ी से चढ़े थे, उसको भी भूले
हवाओं के रुख़ बदलते ही, बोलियाँ भी बदली...

रेत का गुबार उड़ा, तो नसीब भी बदले,
फर्श से अर्श तक, और अर्श से फर्श तक आते आते,
रास्ते भी बदले और मंज़िलें भी बदली...

अब ना तो वो मिज़ाज़ है, ना रिश्तों मे गर्माहट है
ना इश्क़ की खुश्बू है, ना मोहोब्बत की आहट है
बस मंज़िलों की चाहत है, और दौड़ मे शामिल है,
ख्वाब है ऊँचा, पर ना सक्षम है, ना काबिल है....

जैसे जैसे घड़ी की सूइयां आगे बड़ी
अब तो रिश्ते भी बदले
और फरिश्ते भी बदले...