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Tuesday, 11 June 2013

फिर बरसात आई...

एक अरसा हुआ, फिर घिर कर 'पावस' मे बरसात आई,
एक अरसा  हुआ और फिर तुम्हारी याद आई,
चुप थे हम भी और सिले थे लब तुम्हारे
एक अरसे के बाद ज़ुबान पर फिर एक बात आई...

पास थी तुम, पर फिर भी मेरे ना हाथ आई,
जीत कर भी हमने, आज खुशी खुशी फिर मात खाई
जब मिली थी तुम पहली दफ़ा, उस चाँदनी के तले
ऐसा लगा था की एक अरसे के बात फिर रात आई....

तुमसे मिलने की चाहत इस दिल मे बार बार आई
सुकून भी आया और ऩफ़रते भी हज़ार आई
पैरों मे छाले थे, दरवाज़ों पे ताले थे,
आज झरोखे खोले, तो चेहरे पे फिर अरसे बाद बौछार आई...


आज फिर ठंडी हवाओ की सौगात आई
फिर आसमान को सजाने बादलो की बारात आई
बड़ी सूखी सी थी दिल की बंजर ज़मीन मेरी
'पावस' के लिए, तुम फिर बनके बरसात आई...






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