जब शांत सहमी सर्दी की शाम थी,
जब ज़िंदगी कुछ तन्हा, कुछ बेनाम थी
तब लब हिले तो ज़ुबान पर सिर्फ़ तुम्हारा नाम आया,
जब दूर कही बहुत शोर था
जब अंधेरा भी बड़ा घनघोर था
तब नींद खुली, तो ज़हेन में सिर्फ़ तुम्हारा ख़याल आया
जब सुनसान गलियो में मैं भटक रहा था
जब दिल मे मेरे एक अल्फ़ाज़ अटक रहा था
तब भी मेरे सूनेपन को सिर्फ़ तुम्हारा ख़याल आया
जब रास्ता भी नही था और मंज़िलें भी गुमशुदा थी
जब हर सफलता, हर सुख की घड़ी मुझसे जुदा थी
तब भी मेरे विचलित से मन का हौसला बन तुम्हारा नाम आया..
ढलता सूरज बादलों से झाँक कर कुछ कह रहा है
सहमा हुआ सा, लापता सा चाँद भी कुछ कह रहा है
सर्द हवा भी सरसराती, कुछ मुझी से कह रही है
ज़ररा ज़ररा आज तेरा, हाल मुझसे पूछ रहा है..
पूछ पूछ मैं थक गया हूँ
फिर भी पूछता फिर रहा हूँ
आज फिर सामने मेरे, वही एक सवाल आया-
तुम कहाँ हो, तुम कहाँ हो, तुम कहाँ हो, तुम कहाँ हो?
2 comments:
A.M.A.Z.I.N.G...
bloody fucking awesome. this is amazing.
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