ज़िंदगी एक तलाश है...


वक़्त तो रेत की तरह उड़ता जाता है,
और मैं उसी जगह खड़ा रह जाता हू...
चोट ऐसी खाई है वक़्त से
की दर्द तमाम तो यू ही सह जाता हू...
वक़्त तो दौड़ता सा जा रहा है
तो मैं भी नीर बन के, इसमे बह जाता हू...

ज़िंदगी की इस दौड़ में, खुद के लिए एक लम्हा भी नही,
भीड़ में तो तन्हा हू, और अकेले पूरी तरह तन्हा भी नही...
ज़िंदगी ऐसी पहेली है, की खुद को ना समझ पाया हू, ना ढूँढ पाया हू,
चाहे कितने हो आईने घर मे, अक्स अपना ही मैं ना तलाश पाया हू...

क्यू संतुष्ट नही है इंसान, कभी बेचैन है, कभी हताश है,
खुश्क से होठों पे, एक अनकही सी प्यास है,
कही लहरों को साहिल की, कहीं ज़ख़्मों को मरहम की,
कही दिल को धड़कन की...बस एक तलाश है....



(21 May 2010 को लिखी, मेरी खुद की एक रचना...आज हिन्दी दिवस के उपलक्ष में आपके सामने प्रस्तुत की है...)

5 comments:

Anonymous said...

outstanding...

Pawas Jain said...

Thnx a lot... :) ..i would like to know your name though... :) ..and i would like everyone to post their comments with name plz..its really nice to know who is appreciating you... :)

Anonymous said...

Awesome...well done

faguni jain said...

<3 <3 Love it! as usual...your hindi poetry is amazing!!

Aditya said...

nice one, pawas...love your poems...

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